Anubhab Mowar

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लेखनी प्रतियोगिता -29-Jan-2024



सपना

अधूरा हर ख्वाब,झूठा हर सपना निकला
दुनिया की भीड़ में, जब ना कोई अपना निकला

हम तो निकले थे राहों पर, अपनों के खातिर
भरम तब टूटा, जब साथ कोई ना निकला।

बातें करता है, दुनियादारी से निकलने की
वो शख्स , जो अब तक खुद से ना निकला।

चाहा होता दिल से,तो मंजिल मिल ही जाती
एक बार भी वो मुसाफिर, खुद्दारी से ना निकला

फटे जूतों में निकला,कोई जमीन से फलक तक
और कहीं कोई, अपनी मक्कारी से ना निकला।

बहुत सी निकली आहें,इस दिल से मगर
अफसोस कि 'गुमनाम ', सिला कोई ना निकला।

-अनुभव मोवार ' गुमनाम '

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5 Comments

Mohammed urooj khan

30-Jan-2024 03:44 PM

👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾

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Khushbu

29-Jan-2024 05:34 PM

Nice one

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Gunjan Kamal

29-Jan-2024 03:42 PM

👌👏

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